तलाक के दो तरीके: Mutual vs. Contested Divorce – कौन सा सही?

Divorce Cases Ke Legal Aspects
Divorce Cases Ke Legal Aspects

Divorce Cases Ke Legal Aspects: Mutual vs. Contested Divorce | पूरी जानकारी

भारत में तलाक (Divorce) एक संवेदनशील और कानूनी प्रक्रिया है, जिसमें कई पहलू शामिल होते हैं। तलाक दो तरह के होते हैं – Mutual Divorce (आपसी सहमति से तलाक) और Contested Divorce (विवादित तलाक)। सवाल यह उठता है कि कौन सा तलाक जल्दी और आसानी से होता है? किसमें ज्यादा समय और खर्च लगता है? और कानूनी रूप से कौन-से अधिकार और प्रावधान लागू होते हैं? इस लेख में हम तलाक के प्रकार, कानूनी प्रक्रिया, Maintenance (गुजारा भत्ता), Child Custody और Divorce Law से जुड़े महत्वपूर्ण कोर्ट केस की जानकारी देंगे।

1. Mutual Divorce (आपसी सहमति से तलाक) क्या है?

Mutual Divorce तब होता है जब पति-पत्नी दोनों सहमत होते हैं कि वे साथ नहीं रह सकते और आपसी सहमति से अलग होना चाहते हैं

Mutual Divorce की शर्तें:

कम से कम 1 साल से पति-पत्नी अलग रह रहे हों।
दोनों पक्ष तलाक के लिए सहमत हों।
बच्चों की कस्टडी, संपत्ति का बंटवारा और Maintenance पर सहमति हो।

Mutual Divorce की प्रक्रिया:

Step 1: फैमिली कोर्ट में संयुक्त याचिका (Joint Petition) दाखिल करें।
Step 2: पहली सुनवाई (First Motion) में कोर्ट दोनों पक्षों की बात सुनेगा।
Step 3: 6 महीने की “Cooling Off Period” दी जाती है (हालांकि कोर्ट इसे माफ भी कर सकता है)।
Step 4: दूसरी सुनवाई (Second Motion) के बाद कोर्ट तलाक की डिक्री (Divorce Decree) जारी करता है।

Mutual Divorce के फायदे:

✔ जल्दी हो जाता है (6 महीने – 1 साल में पूरा हो सकता है)।
✔ कानूनी खर्च (Legal Fees) कम आता है।
✔ कोर्ट में लंबी लड़ाई से बचा जा सकता है।

Mutual Divorce किन कानूनों के तहत आता है?

  • Hindu Marriage Act, 1955 – धारा 13B
  • Special Marriage Act, 1954 – धारा 28
  • Muslim Personal Law – ‘Talaq-e-Mubarat’ और ‘Khula’

2. Contested Divorce (विवादित तलाक) क्या है?

अगर पति-पत्नी में कोई एक तलाक के लिए तैयार नहीं है या किसी मुद्दे (जैसे Maintenance, Child Custody, घरेलू हिंसा आदि) पर सहमति नहीं बनती है, तो Contested Divorce (विवादित तलाक) फाइल किया जाता है।

Contested Divorce के आधार:

धोखाधड़ी (Fraud) – शादी से पहले कोई महत्वपूर्ण जानकारी छुपाई गई हो।
व्यभिचार (Adultery) – अगर पति या पत्नी किसी अन्य व्यक्ति के साथ अवैध संबंध में हो।
घरेलू हिंसा (Cruelty) – शारीरिक या मानसिक प्रताड़ना।
त्याग (Desertion) – अगर पति या पत्नी 2 साल से बिना किसी कारण छोड़कर चला गया हो
मानसिक बीमारी या नपुंसकता (Mental Disorder or Impotency) – अगर जीवनसाथी गंभीर मानसिक बीमारी से पीड़ित हो।

Contested Divorce की प्रक्रिया:

Step 1: फैमिली कोर्ट में एक पक्ष याचिका दायर करता है।
Step 2: दूसरा पक्ष जवाब दाखिल करता है (Defense Statement)।
Step 3: गवाहों और सबूतों को कोर्ट में पेश किया जाता है।
Step 4: कोर्ट अगर संतुष्ट होता है, तो तलाक की डिक्री जारी करता है।

Contested Divorce में कितना समय लगता है?

2 से 5 साल तक लग सकते हैं, क्योंकि इसमें लंबी कानूनी लड़ाई होती है।

Contested Divorce किन कानूनों के तहत आता है?

  • Hindu Marriage Act, 1955 – धारा 13
  • Muslim Personal Law – Triple Talaq, Talaq-e-Tafweez
  • Indian Divorce Act, 1869 (ईसाई धर्म के लिए)

3. Maintenance और Alimony (गुजारा भत्ता) का क्या नियम है?

तलाक के बाद पत्नी या पति Maintenance (भरण-पोषण) या Alimony (गुजारा भत्ता) मांग सकते हैं।

Maintenance किसे मिलता है?

✔ पत्नी (अगर आर्थिक रूप से निर्भर हो)।
✔ पति (अगर पत्नी अधिक कमाती हो)।
✔ बच्चे (Child Custody मिलने वाले पक्ष को)।

Maintenance कितनी होगी?

पति की आय का 20-40% तक पत्नी को मिल सकता है।
Alimony एकमुश्त हो सकती है, जो पति की कुल संपत्ति का 25-50% तक हो सकती है।

Maintenance से जुड़े कानून:

  • Hindu Marriage Act, 1955 – धारा 24 और 25
  • CrPC धारा 125 (सभी धर्मों के लिए लागू)

4. Child Custody (बच्चों की कस्टडी) कैसे तय होती है?

तलाक के बाद बच्चे की देखभाल और कस्टडी बड़ा मुद्दा होती है।

माता-पिता दोनों बच्चे की कस्टडी का दावा कर सकते हैं।
6 साल से छोटे बच्चे की कस्टडी सामान्यतः मां को दी जाती है।
बच्चे की भलाई (Welfare of the Child) को ध्यान में रखकर कोर्ट फैसला करता है।

Child Custody के प्रकार:

संपूर्ण कस्टडी (Full Custody) – एक ही माता-पिता को मिलती है।
संयुक्त कस्टडी (Joint Custody) – दोनों माता-पिता समय-समय पर बच्चे की देखभाल करते हैं।
विजिटेशन राइट्स (Visitation Rights) – कोर्ट तय करता है कि गैर-कस्टडी माता-पिता बच्चे से कब और कैसे मिल सकते हैं।

5. Divorce से जुड़े महत्वपूर्ण कोर्ट केस

📌 Shilpa Sailesh vs. Varun Sreenivasan (2023) – सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 6 महीने की “Cooling Off Period” को जरूरत पड़ने पर हटाया जा सकता है।

📌 Smt. Sureshta Devi vs. Om Prakash (1991) – आपसी सहमति से तलाक (Mutual Divorce) में दोनों पक्षों की सहमति अंतिम निर्णय तक जरूरी होती है।

📌 Danial Latifi vs. Union of India (2001) – मुस्लिम महिलाओं को Maintenance का अधिकार दिया गया।

निष्कर्ष

अगर पति-पत्नी आपसी सहमति से तलाक लेना चाहते हैं, तो Mutual Divorce सबसे अच्छा और आसान विकल्प है। लेकिन अगर दोनों में सहमति नहीं है, तो Contested Divorce एक लंबी कानूनी प्रक्रिया हो सकती है। तलाक के बाद Maintenance, Child Custody और संपत्ति के अधिकार भी अहम भूमिका निभाते हैं।

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